विज्ञान से भी आगे था पूर्वजों का ज्ञान, खागोलीय घटना ने सीएम को चौकाया, वेधशाला में जब गायब हो गई परछाई, जानिए कैसे करता है शंकु यंत्र काम
हमारे पुर्वजो का ज्ञान विज्ञान से कहीं आगे था। जिसे विज्ञान अब खोज रहा है। वह सालों साल पहले ही खोज चुके थे। यही वजह है कि डोंगला स्थित बराहमिहिर खगोलीय वेधशाला पहुंचे छात्र और मुख्यमंत्री सहित अन्य जनप्रतिनिधी खगोलीय घटना देखकर चौक उठे। एक चबूतरे पर बना शंकु यंत्र पर छाया अचानक गायब हो गई। शंकु यंत्र से सूर्य के वेग को कैसे नापा जाता है। इसकी जानकारी सीएम ने वहां पर मौजूद लोगों और छात्रो को दी।

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 21 जून को होने वाली अद्भुत खगोलीय घटना डोंगला स्थित वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला में देखी। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने शंकु यंत्र पर परछाई परिचालन व्यवस्था में शून्य होती परछाई को देखा और उपस्थित सभी को सूर्य परिचालन से समय परिवर्तन और काल गणना को भी समझाया। उन्होंने शिक्षक के रूप में भारतीय ज्ञान परंपरा अनुसार खगोलीय विज्ञान की जानकारी सभी उपस्थित गणमान्य नागरिकों और जनप्रतिनिधियों को समझाई। इस अवसर पर प्रभारी मंत्री गौतम टेटवाल, सांसद अनिल फिरोजिया, जनप्रतिनिधि राजेश धाकड़, बहादुर सिंह चौहानए महानिदेशक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद डॉ अनिल कोठारी, अपर मुख्य सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संजय दुबे, शिवकुमार शर्मा सहित विद्यार्थी उपस्थित रहे।
शंकु यंत्र क्या है और कैसे करता है काम
क्षितिज वृत्त के धरातल पर निर्मित इस चबूतरे के मध्य में एक शंकु लगा हुआ है, जिसकी छाया से सूर्य का वेग लिया जाता है। इस गोल चबूतरे पर तीन रेखाएँ खींची हैं, जो सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायण की विभिन्न स्थितियों को दर्शाती हैं। सूर्य उत्तरायण के अन्तिम बिन्दु राजून पर जब होता है तब डोंगला में विशेष खगोलीय घटना होती है। दोपहर में 12.28 बजे शंकु की छाया लुप्त हो जाती है। इस घटना में यह सिद्ध होता है कि सूर्य की उत्तर परम क्रान्ति 23.26 व डोंगला के अक्षांश समान हैं। इस दिन (राजून) दिनमान सबसे बड़ा होता है। तत्पश्चात् सूर्य दक्षिणायण की ओर गमन करने लगता है व दिनमान क्रमश: छोटा होने लगता है। इसी स्र5म में जब सूर्य वृत्त (23 सेप्टेम्बर) पर होता है तो दिन.रात बराबर हो जाते हैं। दक्षिणायण के अन्तिम बिन्दु मकर रेखाद्ध पर सूर्य आ जाने की स्थिति में इस मन्त्र पर स्थापित शंकु की छाया सबसे लम्बी दिखाई देती है और दिनमान सबसे छोटा (22 दिसम्बर) होता है। पुन: अगले दिन से उत्तरायण आरम्भ होकर क्रमश: दिनमान तिल.तिल मात्रा में बड़ा होने लगता है। उत्तरायण के मध्य बिन्दु ;22 मार्चद्ध पर सूर्य विषुवद् वृत्त पर होकर पुन: दिन.रात बराबर हो जाते हैं और यही समय मेष संक्रान्ति भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ का समय है।
इस यन्त्र से हम सूर्य के सायन भोगांश व क्रान्ति ज्ञात कर सकते हैं। पलभा द्वारा तत् स्थानीय अक्षांश ज्ञात किये जा सकते हैं व दिशाज्ञान भी हमें इस मन्त्र के माध्यम से ठीक-ठीक ज्ञात हो जाता है। सूर्य का उत्तरायण व दक्षिणायण गमन पृथ्वी के अक्षीय झुकाव का परिणाम है।