एपीएसयू में शोध सहायक का जलवा, पत्नी पर बरसाई सारी इनायत, 17 जगह वाह्य परीक्षक बना डाला

अवधेश प्रताप सिंह विवि की व्यवस्थाएं बेपटरी हो गयी हैं। प्रतिनियुक्ति पर जमें अधिकारी कर्मचारी विवि चला रहे हैं। अपने हिसाब से नियम कायदे बना रहे हैं। इसी अव्यवस्था के मकड़जाल में कर्मचारी से लेकर शिक्षक और छात्र पिस रहे हैं। वहीं कुलपति के खास कहर बरपा रहे हैं। जमकर मजे उठा रहे हैं। इनके पावर का फायदा अब पत्नियों को भी पहुंचने लगा है।

एपीएसयू में शोध सहायक का जलवा, पत्नी पर बरसाई सारी इनायत, 17 जगह वाह्य परीक्षक बना डाला

विश्वविद्यालय की मनमानी जारी ,शोध सहायक नलिन दुवे की पत्नी अतिथि विद्वान शोभा रानी दुवे को फिर से बनाया 17 कालेजों में परीक्षक

आए दिन विवादों का केंद्र बने अवधेश प्रताप सिंह में फिर हुआ कारनामा 

यहां छात्रों पर अपराध दर्ज होता है और नियम तोड़ने वाले उपकृत किए जाते हैं 

Rewa. विश्वविद्यालय रीवा की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। विश्वविद्यालय में सारे अधिकारी बेलगाम हो गये। कुलसचिव से लेकर क‌ई प्रतियुक्ति पर हैं । यही पूरा विवि हिला कर रखे हैं। ऐंड़ा बन कर पेड़ा खा रहे हैं। विवि में पदस्थ शोध सहायक नलिन दुवे जमकर मलाई काट रहे हैं। पूरा सिस्टम यही चला रहे हैं। यही वजह है कि फायदा उठाने में ये पीछे नहीं हैं। ताज़ा मामला बी एड , एम एड प्रायोगिक परीक्षाओं में बाह्य परीक्षको की नियुक्ति का है। पहले से ही विवादों में घिरे शोध सहायक नलिन दुवे ने अपने प्रभाव का दुरूपयोग करते हुए अपनी अतिथि विद्वान पत्नी शोभा रानी दुवे को बी एड प्रथम वर्ष में आठ जगह परीक्षक बनाया था। जिसके बाद मामला न्यायालय पहुंचा था । जिसके बाद उच्च न्यायालय ने कुलसचिव को नियमानुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे। किंतु विश्वविदयालय प्रशासन ने माननीय न्यायालय के निर्देशों की परवाह किए बिना पुनः मनमानी करते हुए शोध सहायक नलिन दुवे की अतिथि विद्वान पत्नी शोभा रानी दुवे को बी एड द्वितीय वर्ष की प्रायोगिक परीक्षाओं में नियम विरुद्ध तरीके से 17 जगह परीक्षक बना दिया है।

आखिर इतनी मेहरबानी क्यों?

सवाल यह उठता है कि आखिर नियम विरुद्ध तरीके से एक अतिथि विद्वान को सत्रह परीक्षाओं में परीक्षक बनाने के पीछे विश्व विद्यालय की क्या मजबूरी है ? विश्वविद्यालय प्रशासन सारे नियम दरकिनार कर अतिथि विद्वान को उपकृत कर रहा है। शिक्षा महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापकों एवं निजी महाविद्यालयों के प्राचार्यों की अनदेखी कर एक अतिथि विद्वान को सत्रह जगह परीक्षक बना दिया जाना सब की समझ में आ रहा है। वर्ष 1956 से संचालित शासकीय शिक्षा महाविद्यालय के प्राध्यापक को अपात्र कर दिया गया। 

शोध सहायक के खिलाफ कर्मचारी संगठन खोल चुके हैं मोर्चा 

शोध सहायक नलिन दुबे के खिलाफ बगावत के सुर फूट चुके हैं। तीन कर्मचारी संगठन इन्हें हटाने की आवाज उठा चुका है। आंदोलन की चेतावनी भी दे दी है। इन्हें मूल विभाग भेजने की मांग की गई है। लेकिन यह उल्टा कर्मचारी संगठनों को ही धमकाने, डराने में जुट गए हैं। कर्मचारी संगठन को ही विवादित बता दिया गया है। यह सारा खेल शोध सहायक का ही है। 

अखबारों को मैनेज कर रहे, छात्रों को बता रहे अपराधी

रीवा के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब छात्रों को हक मांगने और अपनी आवाज बुलंद करने की सजा उन्हें बदनाम कर मिली‌। इस बदनामी की पूरी कहानी लिखने के पीछे शोध सहायक का ही नाम बताया जा रहा है। १० जिलों के सैकड़ों छात्र रुका हुआ रिजल्ट घोषित करने की मांग कर रहे थे। उन्हें ही विवि प्रबंधन ने बदनाम कर दिया।