एपीएस विवि का एक और कारनामा, शासन से पद स्वीकृत नहीं मिली और 84 को कर दिया नियमित

अवधेश प्रताप सिंह विवि अनियमितताओं और लापरवाहियों का केन्द्र बना हुआ है। यहां पदस्थ अधिकारी नियमों को धता बताने और गलत काम करने से गुरेज नहीं करते। तत्कालीन कुलपति और कुलसचिव ने ऐसा कांड कर दिया जो विवि प्रबंधन के बदनामी की वजह बन गया है। शासन से पद स्वीकृत बिना ही 84 कर्मचारियों को नियमित कर वेतनमान का लाभ दिया जा रहा। इस गड़बड़ी का भार विवि के खजाने पर पड़ रहा है।

एपीएस विवि का एक और कारनामा, शासन से पद स्वीकृत नहीं मिली और 84 को कर दिया नियमित
File photo APSU

ए पी एस विश्वविद्यालय में शासन के नियम विरुद्ध 84 कर्मचारियों को दिया गया नियमित वेतनमान का लाभ

शासन ने किया प्रकरण नस्तीबद्ध

रीवा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में 1990 के पूर्व जिन 84 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को सन 1995 से नियमित वेतनमान का लाभ दिया गया है। उनके नियुक्ति पर ही पेच फंस गया है। मध्य प्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग से पद ही  स्वीकृत नहीं है । इसके बावजूद भी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति और  कुल सचिव के साथ-साथ अन्य विभागीय कर्मचारियों द्वारा मध्य प्रदेश शासन के नियमों को ताक पर रखते हुए 84 कर्मचारियों को वर्ग विशेष का लाभ पहुंचाया जा रहा। बिना रोस्टर आरक्षण का पालन किये ही उन सभी कर्मचारियों को नियमित वेतनमान का लाभ दे दिया गया जबकि मध्य प्रदेश शासन के माननीय मुख्य सचिव एवं राज्यपाल के अपर सचिव द्वारा एक आदेश एवं पत्र जारी करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कुल सचिव को निर्देशित किया गया था कि यदि किसी भी प्रकरण में कुलपति एवं कुल सचिव एवं कार्य परिषद के सदस्यों से सहमति नहीं प्रदान होती तो ऐसी स्थिति में उक्त प्रकरण को मध्य प्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग भोपाल को प्रकरण के संबंध में अवगत कराया जाए। साथ ही मध्य प्रदेश शासन से पद स्वीकृत करने के उपरांत ही उक्त कर्मचारियों को शासन के नियमानुसार लाभ दिया जाए ।किंतु अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा में कई ऐसे प्रकरण शासन स्तर पर लंबित हैं जिन्हें शासन से बिना पद स्वीकृत के ही नियम विरुद्ध लाभ दे दिया गया । उक्त कर्मचारियों का पद स्वीकृत ना होने के कारण समयमान वेतनमान एवं पदोन्नति का लाभ तथा मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति भी नहीं प्रदान की गई , जो गंभीर मामला है। कुछ नियमित वेतनमान कर्मचारियों द्वारा हाईकोर्ट जबलपुर में भी पिटीशन दायर किया गया था। वहां भी शासन से पद स्वीकृत ना होने के कारण उच्च न्यायालय द्वारा प्रकरण को निरस्त कर दिया गया है। जबकि उक्त 84 कर्मचारियों का वेतन शासन से नहीं बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा स्वयं के व्यय से उनका वेतन भुगतान किया जाता है।