डीन ने कर दिया सत्यानाश: डॉक्टर छोड़ ही रहे, फार्मोसिस्टों को भी भेजे दे रहे बाहर, वार्ड ब्वाय से बटवाई जा रही दवा

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी और संजय गांधी अस्पताल के अच्छे दिन लद गए। नए डीन के आने के बाद से दुर्गति शुरू हो गई। एक तरफ डॉक्टर नौकरी छोड़कर भाग रहे। दूसरी तरफ फॉल सीलिंग मरीजों पर गिर रही। तो अब नया कांड फिर इनका सामने आ गया। फार्मासिस्टों को यह खुद रीवा से बाहर भेजने का कांड कर रहे हैं। हालात यह है कि वार्ड ब्वाय से दवाइयां बटवानी पड़ रही है। फार्मासिस्ट ही नहीं बचे।

डीन ने कर दिया सत्यानाश: डॉक्टर छोड़ ही रहे, फार्मोसिस्टों को भी भेजे दे रहे बाहर, वार्ड ब्वाय से बटवाई जा रही दवा

3 फार्मासिस्टों को डीन डेप्यूटेशन में भेज चुके, चौथे को भेजने की तैयारी चल रही

3 ने पहले ही नौकरी छोड़ दी थी, कहीं और ज्वाइन कर लिए थे

कुल 16 की हुई थी पदस्थापना, इसमें कुछ सुपर स्पेशलिटी में बाबूगिरी कर रहे

रीवा। डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ला रीवा को मेडिकल हब बनाना चाहते हैं लेकिन उनकी मंशा पर डीन डॉ सुनील अग्रवाल ही पानी फेर रहे हैं। डीन ने सारी पॉवर खुद के पास रख ली अब उसी का दुरुपयोग करते जा रहे हैं। कॉलेज से लेकर अस्पताल तक अंदर से खोखला होता जा रहा। यहां मानक के अनुसार दवाइयां नहीं आ रहीं। अव्यवस्थाएं हावी है। डॉक्टरों को इलाज के लिए जरूरी उपकरण नहीं मिल रहे। इसके कारण वह नौकरी छोड़ रहे हैं। नया मामला अब फार्मासिस्टों का सामने आया है। संजय गांधी अस्पताल में 16 फार्मासिस्ट की नियुक्ति हुई थी। इसमें से 3 फार्मासिस्ट पहले ही छोड़कर अन्यत्र चले गए थे। शेष जो बचे उन्हें कमाई का जरिया बना लिया गया। सभी को आराम की नौकरी दे दी गई। कुछ तो डेप्यूटेशन पर भेज दिया गया। अब सिर्फ 7 ही बचे हैं। उनमें से भी एक डेप्यूटेशन पर जाने की जुगाड़ में है। डीन ने हरी झंडी दिखा दी है। हालात यह है कि इनकी कमी की पूर्ति अब नर्स और वार्ड ब्वाय की ड्यूटी लगाकर पूरी करनी पड़ रही है। फार्मासिस्टों की कमी के कारण ओपीडी के दवा काउंटर पूरे खुल नहीं पा रहे। आधे रह गए हैं। कुछ दिन में हालात यह हो जाएंगे कि एक या दो ही काउंटर खुल पाएंगे। डीन पूरे सिस्टम को अंदरूनी तौर पर ही खोखला करने पर तुले हुए हैं। 

डेप्यूटेशन पर गए लेकिन आया कोई नहीं

वैसे तो फार्मासिस्टों के लिए स्थानांतरण पॉलिसी नहीं है। सिर्फ डेप्यूटेशन पर या फिर एक्सचेंज में जा सकते हैं। अब तक संजय गांधी अस्पताल से तीन फार्मासिस्टों केा डेप्यूटेशन पर भेजा जा चुका है। इनके बदले संजय गांधी अस्पताल को कोई नया फार्मासिस्ट मिला नहीं है। जबकि नियमानुसार जब आपके पास कम फार्मासिस्ट हैं तो बदले में ही इन्हें प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाना था। इसका पालन नहीं किया गया। इसके पीछे वजह आर्थिक लाभ माना जा रहा है। इसके अलावा एक मनीष जैन को भी डेप्यूटेशन में भेजने की तैयारी चल रही है। 

आधे रह गए हैं दवा काउंटर, मरीजों को दवा तक नहीं मिल पाती

फार्मासिस्टों की कमी के कारण ओपीडी दवा काउंटर की संख्या आधी ही रह गई हैं। दो से तीन काउंटर ही खुल रहे हैं। मरीजों की भीड़ ज्यादा आती है। इस भीड़ के कारण ही मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। मरीजों का इंतजर खत्म नहीं होता लेकिन 1 बजते ही दवा काउंटर बंद हो जाता है। ऐसे में कई मर्तबा मरीजों को दवा तक नहीं मिल पाती। दवा काउंटर में बैठने के लिए फार्मासिस्टों की कमी है। वैसे तो दवाओं का वितरण फार्मासिस्टों को ही करना चाहिए लेकिन वार्ड ब्वाय और नर्सों की मदद ली जाती है। यह नियम विरुद्ध है। 

सुपर स्पेशलिटी में कर रहे है मजे

संजय गांधी अस्पताल में 16 फार्मासिस्ट आए थे। इनमे से तीन को सुपर स्पेशलिटी भेज दिया गया। अब वह सुपर स्पेशलिटी में मजे कर रहे हैं। संजय गांधी अस्पताल में फार्मासिस्टों की जरूरत ज्यादा है। सुपर में नर्सें ही दवा का वितरण करती है। ऐसे ें फार्मासिस्ट सिर्फ मजे कर रहे हैं। बाबूगिरी का काम कर रहे हैं। 

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एमरजेंसी ड्यूटी में फार्मासिस्ट बच जाते हैं

एमरजेंसी ड्यूटी में चार फार्मासिस्ट इंगेज है। इसमें दिन का काम तो नर्सें सम्हाल लेती है लेकिन रात में फार्मासिस्ट ड्यूटी करते हंै। ऐसे जो रात में फार्मासिस्ट ड्यूटी करता है। वह अगले दिन अवकाश पर चला जाता है। इससे अल्टरनेट कोई न कोई अवकाश पर बना ही रहता है। इसके अलावा जो बचे हैं वह ओपीडी दवा काउंटर में सेवाएं दे रहे हैं। इनकी सहायता के लिए नर्स और वार्ड ब्वाय लगाए गए हैं। 

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वार्ड ब्वाय दवा का वितरण नहीं कर सकते। उनकी ड्यूटी सहायता में लगाई गई होगी। नर्सों को दवा वितरण में  लगाया जाता है क्योंकि वह वार्डों में भी मरीजों को दवा देती है। हमारे यहां फार्मासिस्टों की कमी है। डिमांड के लिए पत्राचार किया गया है। 

डॉ वीबी सिंह 

फार्मासिस्ट इंचार्ज, एसजीएमएच रीवा