मेडिकल कॉलेजों में डीन की नियुक्ति के बाद चयन पर उठे सवाल, रीवा के नवनियुक्त डीन की नियुक्ति पर भी उठी उंगलियां

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मप्र के 18 मेडिकल कॉलेजों में डीन की नियमित पदस्थापना कर दी। इंटरव्यू के बाद चयन सूची बनाई और फिर ज्वाइनिंग आदेश जारी कर दिया गया। अब यही नियुक्ति आदेश विवादों की वजह बन रहा है। कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं। योग्यता और वरिष्ठता को दरकिनार कर नियुक्ति और पदस्थापना किए जाने का आरोप लगाया गया है। इन आरोपों के दायरे में रीवा में पदस्थ किए गए नए डीन डॉ सुनील अग्रवाल भी आ गए हैं।

मेडिकल कॉलेजों में डीन की नियुक्ति के बाद चयन पर उठे सवाल, रीवा के नवनियुक्त डीन की नियुक्ति पर भी उठी उंगलियां
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वरिष्ठता का चयन में नहीं रखा गया ध्यान
यूनियरों को चयनित किया गया, सीनियर वेटिंग में पहुंच गए
भोपाल।  चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के 18 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए स्थाई डीन का चयन कर लिया गया है। सीधी भर्ती द्वारा इस प्रक्रिया को पूरा किया गया है। इस नियुक्ति प्रक्रिया पर अब सवाल खड़े होने लगे हैं। सरकार ने डीन पद पर नियुक्ति आदेश जारी कर कई वरिष्ठ डॉक्टरों को भी नाराज कर दी जो इस पद के लिए आवेदन किए थे। वरिष्ठता और योग्यता होने के बाद भी उन्हें सिरे से दरकिनार कर दिया गया। सभी को वेटिंग में डाल दिया गया। इतना ही नहीं पदस्थापना में सभी के लिए अलग अलग नियम बनाए गए। कुछ को उन्हीं के गृह जिले में ही पदस्थ कर दिया गया। वहीं कई डॉक्टरों की नियुक्ति ऐसी की गई है जो पद में काफी जूनियर हैं। सीनियरों ने आवेदन किया। उन्हीं कहीं पीछे पटक दिया गया। चयन समिति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। डीन की नियुक्ति जल्द ही बड़ा विवाद का रूप ले सकती है।
रीवा डीन टाइमबाउंड प्रोफेसर
ग्वालियर के डॉ. सुनील अग्रवाल की नियुक्ति को लेकर भी विवाद है। दरअसल आरोप है कि डॉ. अग्रवाल नियमित प्रोफेसर ही नहीं है, वे टाइमबाउंड प्रोफेसर है, इसके बावजूद उन्हें डीन बना दिया गया। डॉ. अग्रवाल मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष हैं। कहा जा रहा है कि शासन ने इनको डीन बनाकर पूरे मेडिकल टीचर्स पर दवाब बनाने का प्रयास किया है।
सालों साल नहीं होंगे रिटायर
 -डॉ. मनीष निगम, डॉ दीपक मरावी, डॉ. घनघोरिया की उम्र 50 वर्ष से कम है। ऐसे में यह अगले 15 से 20 वर्ष तक डीन के पद पर रहेंगे, जो देश में पहला मामला होगा।
- डॉ. गिरीश भागेश्वर रामटेके के जाति प्रमाणपत्र को लेकर भी कई लोगों ने आपत्ति जताई है। लोगों का आरोप है कि डॉ. रामटेके का जाति प्रमाणपत्र महाराष्ट्र का है जो मप्र में मान्य कैसे हो गया।

वरिष्ठ चिकित्सकों को किया गया दरकिनार
कई मेडिकल टीचर्स का आरोप है कि पूरी प्रक्रिया में वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखा गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुआ कहा कि जीएमसी के हृृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव गुप्ता प्रदेश के सबसे सीनियर प्रोफेसरों में से एक हैं। इनके देश विदेश में 100 से ज्यादा रिसर्च पेपर पब्लिश हो चुके हैं, लेकिन विभाग ने इन्हें प्रतीक्षा सूची में रखा है। इसी तरह जबलपुर के डॉ संजय तोतड़े, जीएमसी के डॉ. अरुण भटनागर और डॉ. आरके निगम भी वरिष्ठ हैं लेकिन इनका भी चयन नहीं हुआ।
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गृह जिला में बना दिया डीन
सूत्रों की मानें तो कुछ ऐसे भी डॉक्टर हैं जिन्हें राजनीतिक लाभ पहुंचाया गया है। उन्हें उन्हीं के गृह जिला में डीन बनाकर पदस्थ कर दिया गया। इसमें इंदौर,  विदिशा मेडिकल कॉलेज के अलावा कुछ और भी शामिल हैं। जबकि किसी को भी उनके गृह जिला में पदस्थ करने का निर्णय लिया गया है। अन्य जगहों पर तो निर्णय ठीक रहे लेकिन कई जगहों पर राजनीतिक दखल साफ देखने को मिल रही है।
किसकी कहां की गई है पदस्थापना
डॉ. संजय दीक्षित - इंदौर
डॉ. प्रमेन्द्र सिंह ठाकुर- सागर
डॉ. देवेन्द्र कुमार शाक्य- शिवपुरी 
डॉ. कविता एन सिंह- भोपाल
डॉ अनीता मूथा- रतलाम
डॉ. परवेज अहमद सिद्दिकी- सिवनी
डॉ. गीता गुईन- ग्वालियर
डॉ. नवनीत सक्सेना- जबलपुर
डॉ. शशि गांधी- मंदसौर 
डॉ. मनीष निगम- विदिशा
डॉ. सुनील अग्रवाल- रीवा
डॉ. अक्षय कुमार निगम- छिंदवाड़ा
डॉ. गिरीश भागेश्वर रामटेके- शहडोल
डॉ. अरविंद घनघोरिया- नीमच
डॉ. राजधर दत्त- सिंगरौली
डॉ. संजय कुमार दादू- खंडवा
डॉ. राजेश गौर- श्योपुर
डॉ. दीपक सिंह मरावी- दतिया