एमपीआईडीसी के जीएम का कारनामा, वन विभाग से कराना चाहते हैं गलत काम, कर चुके हैं हंगामा
बदवार तक बिजली की हाइटेंशन लाइन खींचने के लिए एमपीआईडीसी के अधिकारी किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। खुद को बचाने के लिए वन विभाग को ही बली का बकरा बनाने में लगे हैं। नियम विरुद्ध काम कराने हंगामा तक कर चुके हैं। फिर भी दाल नहीं गली। फाइलें डीएफओ कार्यालय में लंबित है।

33 केवी की पहले लाइन खींचने का प्रस्ताव पहले वन विभाग को भेजा, नियमों का पेंच फंसा तो 11 केवी का भेज दिए
दोनों ही लाइनों को खींचने में 1 हेक्टेयर से ज्यादा की वन भूमि फंस रही, केन्द्र से ही मिलेगी मंजूरी
रीवा। आपको बता दें कि गुढ़ में मप्र औद्योगिक विकास निगम ने बदवार को औद्योगिक केन्द्र के रूप में विकसित किया है। यह सालों से विकसित किया जा रहा है। करोड़ों रुपए इसकी व्यवस्था बनाने में फूंके जा चुके हैं। प्लाट काट कर इन्वेस्टर को दिया जा रहा है। यहां पर फिलहाल बिजली का सब स्टेशन नहीं है। इसी इंतजाम में एमपीआईडीसी के रीवा के अधिकारी लगे हुए हैं। रीवा जीएम ने इसके लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा दिया है। टीकर से लाइन खींचकर बदवार तक लानी है। यह क्षेत्र चारों तरफ से वन भूमि से घिरा हुआ है। यहां एक खंभा भी लगाना है तो वन विभाग की अनुमति लेनी पड़ेगी। अब ऐसे में एमपीआईडीसी पूरी की पूरी लाइन ही यहां से नियम विरुद्ध तरीके से खींचकर ले जाना चाहती है। इसी को लेकर वन विभाग के अधिकारियों पर अधिकारी दबाव बनाने में लगे हुए हैं। डीएफओ दफ्तर में रीवा जीएम हंगामा तक मचा चुके हैं। एक महिला कर्मचारी पर तो 1 लाख मांगने का आरोप तक लगा चुके हैं। इतना सब कुछ करने के बाद भी उनकी फाइल क्लियर नहीं हुई। मामला पेडिंग में है।
11 केवी लाइन खींचने की भी नहीं मिल रही अनुमति
एमपीआईडीसी के अधिकारी टीकर से बदवार इंडस्ट्रियल एरिया तक पहले 33 केवी की लाइन खींचना चाहते थे। इसमें करीब 3 हेक्टेयर भूमि फंस रही थी। रीवा वन विभाग से सिर्फ 1 हेक्टेयर से कम की फाइलों को स्वीकृत किया जा सकता है। यही वजह है कि एमपीआईडीसी ने अपने प्रस्ताव में बदलाव कर दिया। उन्होंने 11 केवी की स्वीकृति के लिए आवेदन कर दिया। इसमें भी करीब 2 हेक्टेयर जमीन फंस रही। इस प्रस्ताव को भी डीएफओ ने ओके नहीं किया। फाइल लंबित है।
यह है फाइल स्वीकृति का नियम
यदि किसी प्रोजेक्ट में वन भूमि 1 हेक्टेयर से कम फंस रही है तो इसकी स्वीकृति डीएफओ स्तर से दी जा सकती है। यदि इससे अधिक है तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास ही आवेदन आनलाइन भेजना पड़ेगा। वहीं से स्वीकृति प्रदान की जाएगी। जबकि एमपीआईडीसी के जीएम वन संरक्षण अधिनियम 1980 की जगह वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत स्वीकृत पर अड़े हुए हैं। अभी विवाद जारी है।
डीएफओ कार्यालय में हंगामा भी किए थे जीएम
एमपीआईडीसी में पीडब्लूडी से रिटायर्ड एसडीओ केके गर्ग के पहुंचने के बाद से यहां नियम विरुद्ध कार्यों को कराने की बाढ़ सी आ गई है। एमपीआईडीसी में संविदा पद पर केके गर्ग पदस्थ हैं। इनके दिमाग से ही पूरा खेल चल रहा है। जुगाड़ से रिटायर होने के बाद भी बेरोजगार युवकों का हक मार कर नौकरी कर रहे हैं। डिप्टी सीएम का खास बताकर अधिकारियों पर रौब झाड़ते चलते हैं। यही वजह है जीएम ने डीएफओ चेम्बर में पहुंच कर हंगामा भी किया था।