ढ़ाई साल बाद लौटा एसजीएमएच में फिर वहीं पुराना खौफ, अभी तक शांति थी फिर दहशत में प्रबंधन

संजय गांधी अस्पताल में ढ़ाई साल तक कुछ नहीं हुआ। शांति थी। सुसाइड प्वाइंट का कलंक झेल रहे एसजीएमएच में स्टील की जालियां लगा दी गई। आत्महत्या के मामले रुक गए लेकिन अचानक शनिवार को एक मरीज की मौत ने फिर सब को दहशत में ला दिया है। तीसरी मंजिल से मरीज ने छलांग लगा दी। मरीज की मौत हो गई है। पुलिस जांच में जुटी है। मौत की असल वजह का पता नहीं चल पाया है।

ढ़ाई साल बाद लौटा एसजीएमएच में फिर वहीं पुराना खौफ, अभी तक शांति थी फिर दहशत में प्रबंधन
File photo

मेडिसिन विभाग में भर्ती था 72 वर्षीय बुजुर्ग, अचानक से लगा दी छलांग

रीवा। मिली जानकारी के अनुसार कृष्ण कुमार गुप्ता पिता श्रीधर गुप्ता उम्र 72 वर्ष निवासी बैकुंठपुर पिछले कई दिनों से संजय गांधी अस्पताल के मेडिसिन वार्ड में भर्ती था। संजय गांधी अस्पताल में इलाज चल रहा था लेकिन राहत नहीं मिल रही थी। शनिवार को परिजनों के साथ ही बुजुर्ग वार्ड से बाहर निकले और आंखों से ओझल हो गए। परिजन कुछ समझ पाते तब तक उन्होंने तीसरी मंजिल से नीचे छलांग लगा दी। बुजुर्ग की नीचे गिरते ही दम निकल गया। इस हादसे ने सभी को दहशत में ला दिया है। बुजुर्ग के नीचे गिरने के बाद डॉक्टर और स्टाफ मौके पर पहुंचे। सूचना पुलिस को दी गई। अमहिया पुलिस भी मौके पर पहुंची और पंचनामा के बाद शव को पीएम के लिए भेज दिया गया है। अभी मौत की वजहों का पता स्पष्ट नहीं हो पाया है। पुलिस जांच में जुटी हुई है।

ढ़ाई साल पहले पन्ना से आए मरीज ने लगाई थी छलांग

मेडिसिन विभाग से ही अधिकांश मरीजों ने छलांग लगाकर जान दी है। इसके पहले अंतिम मरीज ने ढ़ाई साल पहले मेडिसिन विभाग से ही छलांग लगा दी थी। उस मरीज को पन्ना से संजय गाध्ंाी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। इलाज में फायदा नहीं हो रहा था। वह परेशान होकर एसजीएमएच से कूद गया था। इसके बाद अब यह हादसा हुआ है। 

भगवान के भरोसे नहीं रह गया मेडिसिन विभाग

डॉक्टरों को धरती का भगवान कहते हैं। यह लोगों की जान बचाते है लेकिन अब मेडिसिन विभाग भगवान भरोसे ही नहीं रह गया है। धरती के भगवान यहां कदम तक नहीं रखते। पहले ही डॉ मनोज इंदूलकर की यहां से कटौती कर दी गई। जो बचे हैं, उन्होंने निजी प्रैक्टिस में जान फूंक दी है। डॉ हरिओम गुप्ता डीन के हाथ पैर बने हुए हैं। पूरा मेडिकल कॉलेज वहीं सम्हाल रहे हैं। ऐसे में उनका अस्पताल में आना नहीं आना दोनो ही बराबर है। डॉ राकेश पटेल का खुद का अस्पताल है। इतना बड़ा अस्पताल बिना उनके नहीं चल सकता। ऐसे में वह कितना समय अस्पताल को देते होंगे। यह अंदाजा लगा सकते हैं, जो शेष डॉक्टर बच गए वह बंगले पर सेवाएं देते हैं। पीजी के डॉक्टरों से उम्मीद करना ही बेमानी है।

स्टील ग्रिल लगी तो हादसे रुके लेकिन डीन ने भुगतान ही नहीं किया

वैसे तो श्याम शाह मेडिकल में करोड़ों का वारा न्यारा हो रहा है। इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कर रहा। ऐसा नहीं है कि नए डीन डॉ सुनील अग्रवाल के आने के बाद सब को इमानदारी से चल रहा है। बेइमानी और बढ़ गई है। डॉक्टर, स्टाफ सब परेशान हैं। डीन की लापरवाही के कारण ही यह मौत भी हुई। एसजीएमएच में गैलरी को स्टील की जालियों से बंद करा दिया गया। इसे आत्महत्या के मामले रुक गए लेकिन ठेकेदार का भुगतान डीन ने रोक दिया। आगे काम ही नहीं हुआ। इसके कारण जो जगह खुली हुई है, वह अब ऐसे मरीजों के लिए खतरा बन गए हैं। 

दहशत में है पूरा स्टाफ 

अभी तक सुरक्षागार्ड से लेकर अस्पताल प्रबंधन तक राहत की सांस ले रहा था। अब 72 वर्षीय बुजुर्ग ने आत्महत्या कर अन्य मरीजों को भी घातक कदम उठाने के लिए लूक प्वाइंट बता दिया है। इससे अभी प्रबंधन की परेशानियां बढ़ गई हैं। ढ़ाई सालों से अस्पताल में शांति थी। फिर वहीं पुरानी वाली दहशत लौट आई है।